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सूरत मॉडल पे ही जा!

 Newsbaji  |  Apr 28, 2024 12:23 PM  | 
Last Updated : Apr 28, 2024 12:23 PM
कामयाब सूरत मॉडल आने के बाद भी, बहनों और माताओं के मंगलसूत्र में ही अटके हुए हैं.
कामयाब सूरत मॉडल आने के बाद भी, बहनों और माताओं के मंगलसूत्र में ही अटके हुए हैं.

(व्यंग्य: राजेंद्र शर्मा)
भई, मोदी जी की ये बात हमारी समझ में तो नहीं आयी. बताइए, कामयाब सूरत मॉडल आने के बाद भी, बहनों और माताओं के मंगलसूत्र में ही अटके हुए हैं. नहीं, हम यह नहीं कह रहे हैं कि उन्हें इसका ख्याल कर के इस चक्कर से बचना चाहिए था कि सारी वफादारी के बावजूद, बेचारे चुनाव आयोग को कोई नोटिस-वोटिस न देना पड़ जाए. इसका ख्याल कर के तो हर्गिज नहीं कि देश तो देश, दुनिया भर में कैसा डंका बजेगा. वह सब नहीं. पर जब सूरत मॉडल खोज लिया है, फिर उसी पर ध्यान लगाते, मंगलसूत्र के लिए माथाफोड़ी करने की क्या जरूरत थी.

बताइए, सूरत मॉडल को कामयाब होते सबने देखा है कि नहीं! एकदम अचूक. सिंदूर कर लो, हिंदू-मुस्लिम कर लो, गारंटी कर लो, 2047 वाला विकास कर लो, सब में आखिरकार पब्लिक बीच में आती ही आती है. और पब्लिक को गोदी मीडिया के बल पर चाहे कितना सिखा-पढ़ा लो, चाहे अपने उद्धारकर्ता होने का उसे कितना ही भरोसा दिला लो, चाहे उसका माथा कितना ही घुमा लो, गर्म करा लो, उस पर पूरा भरोसा नहीं कर सकते. कब गर्व-वर्व सब भूलकर, पब्लिक अपने पेट की आवाज सुनने लग जाए, कह नहीं सकते. देखा नहीं कैसे सब कुछ करने-कराने के बाद भी, कैसे नासपीटी ने पहले चरण की वोटिंग से नागपुर वालों का ही दम फुला दिया.

फिर जब सूरत से एकदम अचूक मॉडल हाथ आ गया है, पब्लिक-वब्लिक के चक्कर में पड़ने की जरूरत ही क्या है? और सच पूछिए तो सूरत मॉडल सिर्फ अचूक ही नहीं है, बहुत ही सस्ता और टिकाऊ भी है. खरीद-वरीद के जीतने से तो सस्ता और टिकाऊ है ही, पब्लिक को बहला-फुसलाकर बटन दबवाने के मुकाबले भी, काफी सस्ता और टिकाऊ है. मुकेश दलाल की बिना चुनाव की सांसदी, चुनाव वाली सांसदी से तो बहुत सस्ती पड़ी ही होगी. और कामयाबी की गारंटी ऊपर से.

हम तो कहते हैं कि मोदी की असली गारंटी तो यही है. बिना चुनाव के जीत की गारंटी. बांड का पैसा, पुलिस, ईडी, सीबीआइ सलामत रहें, विरोधी उम्मीदवार ढूंढे नहीं मिलेगा. जो फिर भी ना माने, शौक से जेल से चुनाव लड़ सकता है. तब हिचक क्या है; हिम्मत कर के एक बार देश भर में सूरत मॉडल आजमाएं, और बेशक पांच सौ पार का झंडा फहराएं.

(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक 'लोकलहर' के संपादक हैं.)

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