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डंका बजते-बजते फटने की गारंटी

 Newsbaji  |  Feb 25, 2024 02:19 PM  | 
Last Updated : Feb 25, 2024 02:19 PM
भारत-प्रेमी ने जैमिनी से पूछा, क्या मोदी जी को फासीवादी कह सकते हैं?
भारत-प्रेमी ने जैमिनी से पूछा, क्या मोदी जी को फासीवादी कह सकते हैं?

(व्यंग्य: राजेंद्र शर्मा)
भई कोई कुछ भी कहे, दुनिया में डंका तो बज रहा है. और कैसे नहीं बजता. जब मोदी जी बजवा रहे हैं, तो डंका तो बजना ही था. आखिर, मोदी की गारंटी है, डंका बजने की. और मोदी की गारंटी यानी गारंटी पूरी होने की गारंटी. फिर किस की मजाल है, जो डंका बजाने से इंकार कर दे. बल्कि नित नये-नये वर्ल्ड लेवल के खिलाड़ी आ रहे हैं और सारी दुनिया को सुनाकर मोदी जी के भारत का डंका बजा रहे हैं.

लेटेस्ट में गूगल ने डंका बजाया हुआ है. हुआ ये कि गूगल के आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस टूल जैमिनी की किसी भारत-प्रेमी ने परीक्षा लेनी चाही. भारत-प्रेमी ने जैमिनी से पूछा, क्या मोदी जी को फासीवादी कह सकते हैं? जैमिनी ने भी अपने हिसाब से काफी चालूपंती दिखाई कि भारत-प्रेमी को नाखुश क्यों करना; न ना में जवाब दिया और न हां में और न यही कहा कि मुझे नहीं पता. उसने कहा कि कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि मोदी जी की कुछ नीतियां फासीवाद के दायरे में आती हैं. हालांकि जैमिनी ने हल्की सी घंटी बजायी थी, लेकिन मोदी सरकार ने भोंपू लगाकर इस घंटी का शोर सबको सुना दिया.

सूचना प्रौद्योगिकी वगैरह के मंत्री ने हाथ के हाथ गूगल पर मोदी जी को फासीवादी कहने का इल्जाम लगा दिया. और धमकी दे दी कि छोड़ेंगे नहीं. यानी साबित कर दिया कि विद्वान जो कहते हैं, गलत नहीं कहते हैं; सवाल का वास्तविक जवाब है- हां! और गूगल ने बदहवासी में वर्ल्ड लेवल पर इसका डंका बजा दिया. उसने जैमिनी को नया पाठ ही पढ़ा दिया और अब उससे मोदी जी तो मोदी जी, हिटलर के भी फासीवादी होने पर सवाल पूछो तो जवाब में मोदी जी के भारत का डंका ही सुनाई देता है -- मैं क्या जानूं? जो जवाब हिटलर पर, वही जवाब मोदी जी पर. ओ हो, डंका ही डंका!

यह लेटेस्ट है, इसकी आवाज रह-रहकर सुनाई देती रहेगी, फिर भी यह तो एक ही डंका हुआ. मोदी जी की सरकार ने और बड़ा वाला डंका ट्विटर उर्फ एक्स से बजवाया है. हुआ ये कि दो साल इंतजार करने के बाद, किसान फिर दिल्ली की तरफ चल पड़े, सरकार को उसके एमएसपी वगैरह के वादे याद दिलाने को. किसान दिल्ली की तरफ चले, तो सरकार ने उन्हें रोकने के लिए हरियाणा और दिल्ली की युद्ध वाली मोर्चेबंदी कर दी. सडक़ों पर विशालकाय कीलें गढ़वा दीं.

 रास्ते बंद कर के पक्की दीवारें चिनवा दीं. खाइयां खुदवा दीं. किसान फिर भी नहीं माने तो, ड्रोन से आंसू गैस के गोलों की और बार्डर पर बंदूकों के छर्रों से लेकर तरह-तरह की गोलियों की, बौछारें करा दीं. और मामला युद्ध का था, सो इंटरनेट बंद किया सो किया, किसान नेताओं से लेकर, किसानों की खबर देने वाले खबरचियों/ यूट्यूब चैनलों तक के सोशल मीडिया खातों पर रोक लगवा दीं. युद्ध क्षेत्र से वही खबर बाहर जाए, जो सरकार बताए! पर पट्ठे ट्विटर उर्फ एक्स ने दुनियाभर में इसी का डंका बजा दिया कि मोदी जी की सरकार, किसानों की खबरों को दबाने के लिए, उसका ही गला दबा रही है.

जुर्माने से लेकर जेल में डाले जाने तक का डर दिखा रही है और आंदोलन करने वालों की आवाज दबाने के अपने गुनाह में, जबरदस्ती उसे भी गुनाहगार बना रही है. यानी फिर वही वाला डंका. और एक फालतू डंका इसका कि भारत की संसद में चाहे नहीं हो, पर ब्रिटेन की संसद में भारत में किसानों पर पुलिस की जुल्म-ज्यादतियों पर बहस हो रही है. यानी डंके ही डंके.

और भैया, चंडीगढ़ वाले मसीह साहब ने मेयर के चुनाव से जो वर्ल्ड लेवल पर डंका बजवाया है, उसकी तो पूछो ही मत. पट्ठे ने पंद्रह को बीस से ज्यादा साबित कर दिया. सिंपल था, बीस की गिनती में से आठ को कैंसल कर दिया. मदर आफ डेमोक्रेसी के इस गणित पर सारी दुनिया सिर धुन ही रही थी कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे डेमोक्रेसी का मर्डर ही कह दिया. इतना भी नहीं सोचा कि मदर और मर्डर, ये कैसे मुमकिन है?

फिर भी, मदर को डेमोक्रेसी के मर्डर के आरोप से बचाने के लिए, मोदी जी की पार्टी ने आखिर-आखिर तक कोशिश की. विरोधियों के तीन-तीन पार्षद खरीद कर, उनकी गिनती घटवायी और अपनी बढ़ायी. इससे मसीह का गणित सही साबित हो भी जाता. पर सुप्रीम कोर्ट अड़ गया. नया चुनाव नहीं कराएंगे, मसीह की गिनती को गलत मनवाएंगे और उसके ऊपर से गणित की मासूम गलती के लिए अगले पर मुकद्दमा चलवाएंगे. मदर ऑफ डेमोक्रेसी का डंका तो बजते-बजते, फटने की ही नौबत आ गयी है.

खैर, डंके और भी बहुत बज रहे हैं, डेमोक्रेसी के डंके के सिवा. इनमें सबसे तेज आवाज है, मोदी पार्टी के वसूली के धंधे के डंके की. अब पता चल रहा है कि करीब ढाई-तीन दर्जन कंपनियों से, मोदी पार्टी ने सवा तीन सौ करोड़ की वसूली की. पहले मांग रखी, मांग पूरी नहीं हुई तो सीबीआई-ईडी को भेज दिया और उसके बाद, उगाही कर ली.

विपक्ष वालों का इसे हफ्ता वसूली कहना बेशक गलत है, क्योंकि यह वसूली या तो सालाना है या चुनावी सीजन के हिसाब से सीजनल है, हफ्तेवार नहीं. पर है तो वसूली ही. वसूली के लिए केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल, यह देश ही नहीं दुनिया भर के लिए डेमोक्रेसी के मातृत्व का नया रूप तो है ही, ईमानदारी का भी एकदम नया रूप है. लाजिमी है कि इस वाली ईमानदारी का भी जमकर डंका बज रहा है.

और डंका तो चुनावी बांड वाली ईमानदारी का भी खूब ही बज रहा है. यह दूसरी बात है कि इस वाली ईमानदारी का डंका तब तेज हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस ईमानदारी के मौकों पर ही रोक लगा दी. न होगा चुनावी बांड से पैसों का लेन और न रहेगी पैसे के लेन में स्वच्छता. बेशक, दुनिया भर में डंका इस चमत्कार का भी बज रहा है कि लेन-देन की ये व्यवस्था इतनी ज्यादा पारदर्शी थी कि लेने और देने वाले के सिवा कोई तीसरा जान ही नहीं सकता था कि किसने क्या दिया और क्या लिया?

पब्लिक तो खैर आती ही किस गिनती में है जो जानेगी. वैसे डंका तो मोदी जी की ‘‘मुक्ति’’ की नायब स्टाइल का भी बज रहा है-- जैसे-जैसे देश को कांग्रेस-मुक्त कर रहे हैं, ज्यादा से ज्यादा कांग्रेसियों को गले लगा रहे हैं; जैसे-जैसे देश को भ्रष्टाचार-मुक्त कर रहे हैं, ज्यादा से ज्यादा भ्रष्टों को अपने पाले में खींचकर ला रहे हैं; जैसे-जैसे गुलामी की निशानियां मिटा रहे हैं, देश को अमरीका का ज्यादा से ज्यादा वफादार ताबेदार बना रहे हैं. यानी डंका फटने की गारंटी है.

(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक 'लोकलहर' के संपादक हैं.)

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