(व्यंग्य: राजेंद्र शर्मा)
ये विरोधी, मोदी जी का विरोध करने के लिए और कितने नीचे जाएंगे. बताइए, अब इसका भी विरोध कर रहे हैं कि दूरदर्शन समाचार का लोगो क्यों बदल दिया? और लोगो की लिखत बदली तो बदली, लोगो का रंग क्यों बदल दिया? और रंग भी बदला तो बदला, रंग लाल से बदलकर भगवा क्यों कर दिया? बताइए, अजब हुज्जत है. दस साल में मोदी जी ने पूरा का पूरा चैनल बदल डाला. चैनल तो चैनल, समाचार ही बदल डाला. टीवी समाचार भी सिर्फ सरकारी दूरदर्शन का नहीं, अंबानी-अडानी-जैन-पुरी आदि निजधारी चैनलों का भी बदल डाला. मीडिया को सरदर्दी से गोदी सवार तक बना डाला. उस सब का कुछ नहीं और रंग बदलने पर हंगामा. और ये विरोध सिर्फ भगवाकरण का नहीं है.
मोदी जी कांग्रेस के, मुस्लिम लीग के और बचे-खुचे मामले में कम्युनिस्टों के पीछे चलने पर यूं ही चिंता थोड़े ही जताते हैं.बताइए, भगवाकरण का विरोध करने के लिए क्या अब कांग्रेसी, दूरदर्शन के लाल रंग के लोगो की हिमायत करने तक चले जाएंगे? जी हां, जो लोगो बदला गया है, लाल रंग का था, लाल रंग का. यह लाल रंग कब उन्हें छोड़ेगा! वही लाल रंग, जिसे चुनाव में पब्लिक ने बार-बार ठुकराया है और एक कोने में पहुंचा दिया है. उसी विदेशी लाल रंग को अमृतकाल में भारत कब तक ढोता रहता और वह भी तब, जबकि स्वदेशी भगवा रंग सामने है. अब प्लीज कोई यह मत कहना कि खून तो हमारा भी लाल है, इसलिए लाल रंग भी देसी है. खून का रंग लाल है, यह भी पश्चिमी प्रचार है. वर्ना गोरक्षकों वगैरह ने जब भी खून बहाया है, उन्होंने तो खून भगवा ही पाया है, जो वक्त गुजरने के साथ काला तो पड़ जाता है, पर लाल कभी नहीं होता.
हम तो कहते हैं कि यह प्रश्न ही गलत है कि दूरदर्शन के लोगो का रंग भगवा क्यों कर दिया? सही प्रश्न यह है कि मोदी जी के होते हुए भी अब तक कोई और रंग कैसे था? बल्कि उससे भी सटीक प्रश्न यह है कि दूरदर्शन के लोगो का लाल रंग, करतूत किस की थी? नेहरू की या इंदिरा जी की? उन्होंने जानबूझकर दूरदर्शन का लोगो का रंग लाल कराया होगा, कि बाद में मोदी आए और बदलवाए, तो इनके परिवारवादी वंशजों को उसे यह गाली देने का एक और बहाना मिल जाए कि मोदी सब का भगवाकरण कर रहा है, सारे रंगों को हटाकर भगवा रंग पोत रहा है. पर दुनिया जानती है कि यह सच नहीं है. केसरिया झंडा अब भी तिरंगे की बगल में ही लग रहा है. माना कि भगवा अब तिरंगे से ज्यादा लग रहा है, तिरंगे से ऊपर लग रहा है, फिर भी अभी तिरंगा है तो सही. तिरंगे का हरा रंग तक तो अब तक हटा नहीं है, फिर बाकी सारे रंग हटाने का झूठा शोर क्यों मचाया जा रहा है!
और इन विरोधियों से इसकी कद्र करने की उम्मीद तो की ही कैसे जा सकती है कि दूरदर्शन के लोगो में यह बदलाव किस सुघड़ी में किया गया है. जी हां! दूरदर्शन के लोगो में यह बदलाव, राम नवमी के पवित्र दिन पर किया गया है. राम नवमी भी ऐसी-वैसी नहीं, राम के अयोध्या में अपने पक्के मकान में लाए जाने के बाद, पहली राम नवमी. वह राम नवमी, जो पांच सौ वर्ष की प्रतीक्षा, तपस्या और संघर्ष के बाद आयी है! वह राम नवमी, जिस पर मोदी जी ने राम के माथे पर सूर्य तिलक कराया है. वह सूर्य तिलक वाली राम नवमी, जिस पर मोदी जी भावुक हो उठे और असम में चुनावी सभा में चुनावी भाषण छोड़कर, भरी दोपहरी में लोगों से सेलफोन की टॉर्च से किरण फेंकवाने लगे.
कि कहीं सूर्य की किरणों का टोटा न पड़ जाए और राम का सूर्य तिलक छोटा न पड़ जाए. और राम, लक्ष्मण, जानकी के जैकारे लगवाने लगे, तो लगवाते ही चले गए. चुनाव सभा को धर्म-सभा में बदलते ही चले गए. पर जिन्हें दूरदर्शन का लोगो तक बदलने पर आपत्ति है, चुनाव सभा के धर्म-सभा में बदलने की महत्ता क्या समझेंगे. उल्टे बेचारे चुनाव आयोग की नींद में खलल डालने में लगे हुए हैं कि क्या भांग पीकर सोया पड़ा है? चुनाव के लिए धर्म की दुहाई के इस्तेमाल को रोकने के लिए कुछ करता क्यों नहीं है, वगैरह, वगैरह. अब इन्हें कौन समझाए कि चुनाव आयोग मोदी के कामों में तो दखल फिर भी दे सकता है, पर राम के काम में और राम के नाम में तो, चुनाव आयोग भी दखल नहीं दे सकता है.
अब जिन विरोधियों को दूरदर्शन के लोगो का रंग बदलना या चुनाव सभा को धर्म-सभा में बदलना तक हजम नहीं हो रहा है, उनसे संविधान बदलने के वादे हजम करने की कोई उम्मीद ही कैसे कर सकता है. अनंत हेगड़े साहब ने बाकायदा खुलासा कर के बताया कि मोदी जी को अबकी बार चार सौ पार ही क्यों चाहिए; उससे कम नहीं. चार सौ पार नहीं होगा, तो संविधान में छोटे-मोटे संशोधन करने में ही अटके रह जाएंगे, पर संविधान नहीं बदल पाएंगे. लेकिन, चार सौ पार की जरूरत को समझने के बजाए, विरोधियों ने इसका शोर मचाना शुरू कर दिया कि ये तो बाबा साहब का संविधान ही बदल डालेंगे. इस बार चुनाव में नहीं हराया, तो फिर ये हारने-हराने का किसी को मौका ही नहीं देंगे! फिर ज्योति मिर्धा ने कहा, संविधान बदलना होगा.
लल्लू सिंह ने कहा कि मोदी जी को मजबूत करो, संविधान बदलना है. फिर भी भाई लोग नहीं समझे. अब तो स्वयं टेलीविजन वाले राम, अरुण गोविल जी ने भी कह दिया है कि संविधान पुराना पड़ गया है, उसे तो बदलना ही होगा, तब भी भाई लोग समझने को तैयार नहीं हैं. तब मोदी जी को ही घुमाकर कान पकड़ना पड़ गया और संविधान छोड़, उसे बनाने वाली संविधान सभा को ही बदलने का रास्ता पकड़ना पड़ गया. उन्होंने संविधान बनाने वालों के ही अस्सी-नव्बे फीसद से ज्यादा को, एक ही झटके में सनातनी बना दिया. अब सनातनियों का प्रचंड बहुमत बनाएगा, तो संविधान सनातनियों का संविधान ही तो कहलाएगा. संविधान न सही, संविधान की उद्देशिका तो बदलने दो यारों -- हम भारत के सनातनी...!
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक'लोकलहर' के संपादक हैं.)
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