(व्यंग्य: राजेंद्र शर्मा)
अब बोलें‚ विकास कहां है‚ विकास कहां है, की रट लगाने वाले. मोदी जी का विकास ऑन कैमरा है‚ सारी दुनिया के देखने के लिए. ड्रोन से‚ जी हां ड्रोन से शंभू बार्डर पर‚ आंसू गैस के गोले बरसाए जा रहे हैं. न पुलिस की जरूरत, न आंसू गैस के गोले दागने वाली गन की. सीधे आसमान से गोलों की बारिश और वह भी पूरी तरह से ऑटोमैटिक.
रिमोट हरियाणा के बार्डर के अंदर और गोलों की बारिश पंजाब के इलाके में. और यह भी मामूली किसानों के लिए. जो ड्रोन किसानों की फसलों पर कीटनाशक वगैरह का छिड़काव करने के लिए मंगवाए गए थे‚ मोदी राज ने उनमें भी बदलाव कर दिया और आंसू गैस के गोले दागने का सिस्टम फिट कर दिया. यानी विकास में भी विकास. और कितना विकास मांगता है रे‚ इंडिया!
बेशक‚ उन्हीं किसानों के लिए शंभू बार्डर ही नहीं, राजधानी दिल्ली तक हरेक बार्डर पर सरियानुमा कीलें हैं. कंक्रीट की दीवारें हैं. कंटीले तारों की दीवारें हैं. कंटेनर हैं. खंदकें–खाइयां‚ वगैरह–वगैरह भी हैं. तरह–तरह के हथियारों से लैस हजारों सिपाही हैं. यानी बार्डर वाली फीलिंग देने वाले सारे इंतजाम हैं. वैसे इंतजाम जो युद्ध में बार्डरों पर हमेशा से होते आए हैं. अब आप पूछेंगे कि इसमें विकास कहां हैॽ यह तो वही पुरानी चाल है. जी नहीं‚ आप गलत हैं. इसमें भी विकास है.
और ऐसा–वैसा नहीं‚ ताबड़तोड़ विकास है. माना कि युद्ध के सारे इंतजाम पुराने हैं‚ पर क्या युद्ध का मोर्चा भी पुराना है. जैसे मोर्चा देश के बार्डर पर लगते थे‚ अब देश के अंदर राज्यों के बार्डर पर लग रहे हैं; यह क्या कोई छोटा–मोटा विकास है. और जैसे मोर्चा दुश्मन देशों की फौजों के खिलाफ लगते थे‚ अपने देश के किसानों के खिलाफ लगा दिए हैं‚ उसका क्या?
आजादी के बाद इससे पहले कभी ऐसा देखने को मिला था? आजादी के बाद की छोड़ो‚ क्या अंगरेजी राज में भी कभी ऐसा देखने को मिला था? अंगरेजी राज की भी छोड़ो‚ क्या सुल्तानों‚ मुगलों वगैरह के जमाने में कभी ऐसा देखने को मिला था? जो हजार साल की गुलामी में नहीं हुआ‚ अमृतकाल वाली आजादी में हो रहा है; यह भी अगर विकास नहीं है‚ तो विकास किसे कहेंगे?
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और 'लोकलहर' के संपादक हैं.)
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