प्यारे दादाजी,
आशा है आप और दादी घर में सब ठीक होंगे, मैं आपको बहुत याद करती हूं, पर क्या करूं समय ही ऐसा चल रहा है कि मैं खुद तक के लिए समय नहीं निकाल पाती हूं.
आप सही कहते थे, बचपन बहुत अच्छा होता है, वरना तो जिंदगी की भाग दौड़ ऐसी होती है कि ना जाने कितनों को हमें दूर करना पड़ जाता है. आपकी हर सीख मैं आज भी याद करती हूं और कोशिश करती हूं कि उसे अपनी जिन्दगी में अमल में ला सकूं.
बाहर रहने पर अब समझ आता है कि घर कितना सुकून भरा होता है, आपने अपनी उम्र के हर पड़ाव को इतने अच्छे से निभाया है, मैं भी यही चाहती हूं कि आपकी तरह हर पड़ाव को शांति और समझदारी से सुलझा कर हर लम्हे को जीते हुए आगे बढ़ती जाऊं.
यहां सब अच्छा है मैं एक अच्छी कम्पनी में काम कर रही हूं अच्छा कमा लेती हूं, सब बहुत अच्छा है पर सबकी याद बहुत आती है. आप कभी दादीजी को लेकर यहां आईए, मैं आपको पूरी दिल्ली की सैर कराऊंगी.
बाकी अभी बाहर माहौल ठीक नहीं है, कोविड के चलते आप और दादीजी अपना ध्यान रखियेगा. मैं आपके खत का इंतजार करूंगी. और हां आपको तो पता है- दिल्ली जैसे बड़े से शहर की लडकी, जिसे पसंद है कागज कलम, जिनपर लिख देती है वो अपने दिल का हाल और उकेर देती है उस हाल को तस्वीरों में, हां अपने पैरों पर खड़े होने के लिए सुबह की धूप में जाकर आती है घर रात की चांदनी में.
प्रणाम,
जयश्री
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