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क्या मैं भी कभी किसी के लिए वाक़ई ज़रूरी था...? पढ़ें जिंदगी की हकीकत बयां करती खुली चिट्ठी

 Newsbaji  |  Feb 18, 2023 11:08 AM  | 
Last Updated : Feb 18, 2023 11:08 AM
जिंदगी के एहसासों को बयान करता खुला पत्र
जिंदगी के एहसासों को बयान करता खुला पत्र

मैं कभी किसी का पूरी तरह नहीं हो सका. किसी भी जगह शत-प्रतिशत नहीं रहा. किसी से बात करते हुए किसी और के ख़याल में रहा. एक नौकरी में रहकर किसी दूसरे काम को सोचा. घर में, घर के बाहर हर एक जगह मैं थोड़ा थोड़ा सा मिल जाऊंगा.
इस बिखराव को जीने में कोई सुख नहीं है, यक़ीन मानिए. मैं ने बहुत चाहा कि किसी दिन एक बड़ा सा झोला लेकर घर से बाहर निकलूँ और हर उस जगह से ख़ुद को बटोर लाऊँ जहां मैं कभी किसी जूते के नीचे दबा होता हूँ तो कभी किसी सिगरेट की दुकान के बाहर टँगे लाइटर के साथ झूल रहा होता हूं.

सच मानिए इस ‘बटोर लिए जाना’ के लिए मैंने बहुत बार ख़ुद को मौके दिए, लेकिन हर बार नाकाम हुआ. हर बार मैं घर से बाहर निकल कर और बिखर गया.
ख़ुद को बेबस पाकर मैं ने कितनी ही बार चाहा कि कोई मेरी मदद कर दे. कितनी ही बार कितनों के सामने हाथ फैला कर कहना चाहा कि जिस तरह से समय की हवा में मेरा मन झड़ रहा है ऐसे में एक दिन कुछ नहीं बचेगा. लेकिन मैं कह ना सका. खुली हथेली की सभी अंगुलियां हथेली की ओर सिमट गयीं.

मैं एक बारिश की आस में हूँ जो मन की मिट्टी को भिगो दे, ताकि फिर कैसी भी हवा में मन झड़ने से बच जाए.
या फिर कोई प्रकृति प्रेमी मेरे सूखते मन के पेड़ को दो घूंट पानी दे दे. फिर उसे एक आकार देकर दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत तस्वीर को ख़ुद अपने हाथों से बनाए. लेकिन अफ़्सोस कि लोग अब पेड़ में पानी डालना भूल गये हैं. किसी सूखते पौधे को बचाने की जगह उसी गमले में नए पौधे को लगाने की तैयारी शुरू कर देते हैं.

मैं… अब धीरे धीरे अपना रिप्लेसमेंट देख रहा हूँ. गमले से, घर से, लोगों के मन से और हर उस जगह से जहां जहां मैंने ख़ुद को रोपा था. मैं सड़क के किनारे एक पत्थर पर बैठा हूं, पास में कुछ लोग खड़े हैं… सामने इतनी तेज़ी से गाड़ियाँ गुज़र रही हैं कि मैं गिनती भी नहीं कर पा रहा हूँ. लेकिन फिर सोचता हूँ कि ऐसी कोई गिनती भी क्यों करनी जिसका किया जाना कोई ज़रूरी नहीं. जिसका हिसाब भी तो नहीं रखना.
लेकिन अब इस सवाल में हूँ कि आख़िर ज़रूरी क्या है? क्या एक वक़्त तक बहुत ज़रूरी सा दिखने वाला भी एक समय बाद रिप्लेस कर दिया जाता होगा? अगर ऐसा है तो फिर वो ज़रूरी कैसे हुआ? क्या मैं भी ऐसे ही कभी किसी के लिए वाक़ई ज़रूरी था…?
- अस्तित्व

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