छोटी सी कहानी! एक बादशाह ने अपनी मौत के बाद क़ब्र पर इन पंक्तियों को लिखने का आदेश दिया था:'इस क़ब्र में अपार धनराशि दबी हुई है. जो व्यक्ति अत्यधिक निर्धन हो वह, इसे खोदकर प्राप्त कर सकता है!' उस क़ब्र के पास से हजारों भिखारी, अत्यंत गरीब निकलते, लेकिन उनमें से कोई भी इतना गरीब न था, जो किसी कब्र को खोदे. एक अत्यंत बूढ़ा, बेहद गरीब भिखारी उस कब्र के पास वर्षों से रह रहा था, उधर से निकलने वाले हर भिखारी को उस पत्थर की ओर इशारा करके कहता' जाओ देख लो, शायद कुछ रास्ता निकल आए.' लेकिन कोई भी इतना दरिद्र नहीं था जो उस कब्र को खोदने का इरादा रखता.
अंततः एक दिन ऐसा भी आया जब एक व्यक्ति वहां आ पहुंचा और उसने कहा कि वह कब्र को खोदे बिना नहीं रह सकता. जो वहां आया, वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं था, खुद एक सम्राट था. जिसने उस कब्र वाले देश को अभी-अभी जीता था. उसने अपने मुखबिरों से इसके बारे में सुना था.
उसने ज़रा भी समय गंवाना उचित नहीं समझा. जिस रोज उसने राज्य जीता, उसी दिन अपार धन राशि की खोज में कब्र तक पहुंच गया. कब्र में मिला क्या? केवल एक पत्थर. जिस पर लिखा था,' पैसे के लालच में मेरी कब्र तक पहुंचने वाले खुद को पहचान, क्या तू मनुष्य है.'
कितना सटीक लिखा था. जो मनुष्य होगा, वह मरे हुए को सताने का फैसला कैसे करेगा. जिस काम को हजारों भिखारी नहीं कर पाए, उसे सम्राट ने करने में एक दिन भी नहीं लगाया. जब कब्र खोदने वाला सम्राट निराश, अपमानित होकर कब्र से लौटा तो बूढ़ा भिखारी जोर-जोर से हंसा. लोगों ने उसे कहते हुए सुना,' मैं कितने वर्षों से तेरे इंतजार में था. अंततः आज इस दुनिया के सबसे गरीब, दरिद्र और अशक्त व्यक्ति के भी दर्शन हो गए.' किसी के असली स्वरूप की पहचान आसान नहीं होती. असली भिखारी, वह नहीं जो आसानी से मिल जाते हैं. बल्कि वह होते हैं, जो आसानी से देखे नहीं जा सकते. दुनिया को संवेदनहीन, प्रेम से दूर रखने में ऐसे लोगों की अधिक भूमिका होती है.
तिरुवल्लुवर ने बड़ी सुंदर बात कही है,'प्रेम जीवन का प्राण है. जिसमें प्रेम नहीं, वह सिर्फ मांस से घिरी हुई हड्डियों का ढेर है. एक बार एक फकीर को कुछ बहुत पढ़े लिखे लोगों ने घेर लिया. उससे प्रेम पर चर्चा करने लगे. शास्त्रार्थ करने लगे. प्रेम की परिभाषा, व्याख्या पूछने लगे. उनकी बातें सुनकर फकीर खूब हंसे. फकीर ने कहा 'आपकी बातें सुनकर लगता है, जैसे कोई सुनार फूलों की बगिया में घुस आया है. वह फूलों का सौंदर्य स्वर्ण को परखने वाले पत्थर पर घिस-घिस कर, कर रहा है.' हम सब का प्रेम ऐसा ही मालूम होता है. जिसकी ओर फकीर ने संकेत किया. शब्द आते ही प्रेम गायब. शब्द आते हैं अर्थ पीछे छूट जाता है. कहना संभव नहीं. बारिश में भीगी मिट्टी की तरह. भीगी, मिट्टी की खुशबू, सुख कैसे कहें!
जीवन की शुभकामना सहित...
-दया शंकर मिश्र
(Disclaimer: लेखक देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं. ये लेख डिप्रेशन और आत्महत्या के विरुद्ध लेखक की किताब 'जीवन संवाद' से लिया गया है.)
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