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जाति न पूछो पीएम की...!

 Newsbaji  |  Feb 11, 2024 02:57 PM  | 
Last Updated : Feb 11, 2024 02:57 PM
प्रधानमंत्री मोदी की जाति को लेकर विवाद शुरू हो गया है.
प्रधानमंत्री मोदी की जाति को लेकर विवाद शुरू हो गया है.

(व्यंग्य: राजेंद्र शर्मा)
ये तो विरोधियों की हद्द ही है. बताइए, एक सौ चालीस करोड़ भारतीयों के पीएम की जाति पूछ रहे हैं. दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता की जाति पूछ रहे हैं. भारत को विश्व गुरु से लेकर मदर ऑफ डैमोक्रेसी तक, और भी न जाने क्या-क्या बनाने वाले की, जाति पूछ रहे हैं. हमारे बड़े-बुजुर्ग तो पहले ही कह गए थे-- जाति न पूछो साधु की.... जिस देश में साधु की जाति पूछने तक की मनाही है, उद्दंड विपक्षी राजगद्दी पर बैठने वालों की जाति पूछ रहे हैं! इसे तो पहले ही बैन कर देना चाहिए था.

अब प्लीज कोई हमें यह कहकर बहकाने की कोशिश नहीं करे कि मोदी जी तो खुद अपनी जाति बताते हैं. बार-बार बताते हैं. सकुचा-सकुचा के नहीं, छाती ठोक कर बताते हैं. चुनावी सभाओं में ही नहीं, संसद के अंदर भी बताते हैं. बेशक बताते हैं. लेकिन, बताते हैं, अपनी मर्जी से बताते हैं. बताने और पूछने में बहुत अंतर है. बुजुर्गों ने भी साधु हो या राजा, उसकी जाति पूछने की मनाही की है; उनके अपनी जाति बताने की मनाही नहीं की है. जो मोदी जी ट्रांसपेरेंसी में करते हैं प्यार, अपनी जाति बताने से क्यों करने लगे इंकार.

पर विरोधी कैसे उनसे जाति पूछ रहे हैं? और पूछ भी कहां रहे हैं! ये तो मोदी जी की जाति पर भी सवाल कर रहे हैं, उनकी डिग्री की तरह. कहते हैं, जाति में भी फर्जीवाड़ा है. मोदी जी सिर्फ कागज वाले ओबीसी हैं. मोदी जी न ओबीसी घर में पैदा हुए. न ओबीसी घर में पले-बढ़े. करीब पचास साल जनरल रहे, उसके बाद 27 अक्टूबर 1999 से ओबीसी बने.

अब क्या पीएम जी अपनी जाति का कागज दिखाते फिरेंगे? और वह भी उन्हीं विरोधियों के मांगने पर, जो पीएम जी के मांगने पर कल तक छाती ठोककर कहते थे -- कागज नहीं दिखाएंगे! और इन्हें कागज दिखाने का फायदा ही क्या? ये तो कागज के पच्चीस साल के सामने बिना कागज के 50  साल अड़ा रहे हैं और असली-नकली का झगड़ा करा रहे हैं.

क्या जन्म की जाति ही सब कुछ है, बाद में सरकार की बनायी जाति कुछ नहीं? धर्मांतरण गलत होता है, जाति-अंतरण नहीं. फिर धर्मांतरण भी अच्छा है, अगर घर वापसी वाला हो; वैसे ही कागज का हुआ तो क्या जाति-अंतरण भी अच्छा है, बस वोट दिलाने वाला हो.

(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और 'लोकलहर' के संपादक हैं.)

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