चिट्ठीबाजी: जैसे कल की ही बात हो, जब डॉक्टर ने हॉस्पिटल के उस रूम में जहां मां एडमिट थीं। अंदर बुलाकर कहा हो…‘बहन आयी है, देख तो ले.’ और उस दिन पहली बार तुम्हें गोद में उठाकर मैं बेहद ख़ुश था। एक मुराद जो पूरी हुई थी। ये वो दिन था जब तुम्हारे आने से मुझे लगा कि अब तो मैं बड़ा भाई बन गया हूं।
आज इतने सालों बाद जब पलट कर पीछे देखता हूँ तो एक छोटा सा लड़का अपनी बहन को कभी गोद में उठाए तो कभी साइकिल सिखाते, घुमाते-फिराते तो कभी चोरी से टॉफ़ी खिलाता दिख जाता है।
दिन आगे बढ़ते हैं, समय बढ़ता है, लेकिन याद के किसी हिस्से में वो बच्चे आज भी उतने ही बड़े हैं। एक दूसरे को किसी भी आंच से बचाते हुए।
कहते हैं बेटियाँ बहुत तेज़ी से बड़ी होती हैं। ऐसे ही तुम भी ना जाने कब इतनी बड़ी हो गई पता ही नहीं चला। एक एक दिन समय के साथ दर्ज है, रहेगा।
उस रोज़ जब तुम्हें विदा करने को गोद में उठाया तो अचानक से सब बदल गया था। आसपास की कोई आवाज़ सुनाई ही नहीं दे रही थी। जैसे पहली बार तुम्हें गोद में उठाया था, ये ठीक वैसा ही था… लेकिन इस बार तुम्हें विदा करना था। ये समय भारी था।
अतीत से वर्तमान में आते ही तुम्हें जाते हुए देखना मुश्किल तो था। लेकिन यह सौभाग्य का समय भी था। आज जब तुम्हें किसी घर की सबसे मज़बूत कड़ी के रूप में देखता हूँ तो लगता है। समय कैसे सबको ढालता है।
बेटियाँ घर की रौशनी होती हैं। एक ऐसी रौशनी को मैंने तुम्हारे आने के बाद घर में भरते हुए देखा। जीवन के अभी तक के सफ़र में तमाम पड़ाव मिले, हम एक दोस्त रहे।
घर में छोटी बहन का होना, बड़े भाई को पिता के दायित्व को निभाना भी सिखाता है। पिता एक भाव है, जिसे जीने का मौक़ा मुझे तुमने दिया। तुमसे मैं ने बहुत कुछ सीखा, मेरा यह जीवन तुम्हारा शुक्रगुज़ार रहेगा।
जन्मदिन मुबारक मेरे बच्चे, बेहद मुबारक।
आकाशदीप शुक्ला, पत्रकार
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