(व्यंग्य: राजेंद्र शर्मा)
भई, अब यह तो ठीक बात नहीं है. मोदी जी ने जब से यह कहा है कि दस साल में उन्होंने जो भी किया है, वह तो सिर्फ ट्रेलर है, असली पिक्चर अभी बाकी है; लोगों के सामने अब तक जो आया है, वह तो स्टार्टर है, मेन कोर्स यानी असली भोजन तो अभी बाकी है; तब से विरोधी उनकी बात का शाब्दिक अर्थ निकालने के ही पीछे पड़ गए हैं. पूछ रहे हैं कि यह आने वाले पांच साल के लिए मोदी जी का वादा है या धमकी है? ये तो इसकी धमकी है कि दस साल में जो हुआ वह तो सिर्फ नमूना था, अबकी बार मौका मिल गया तो इससे कई गुना ज्यादा कर के दिखाएंगे. मसलन, 2014 से 2022 तक, उनके राज के आठ साल में एक लाख से ज्यादा यानी हर रोज तीस से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है. तो क्या मोदी जी अगर तीसरा मौका पा जाएंगे, तो तीस का आंकड़ा पांच गुने या दस गुने पर पहुंचाएंगे? असली पिक्चर किसानों को ट्रेलर से कितने गुने भारी पड़ेगी?
फिर किसानों की तो बात फिर भी समझ में आती है, उनकी तो किस्मत ही खराब है. किसान तो तब भी आत्महत्या कर रहे थे, जब मोदी जी दिल्ली की गद्दी पर नहीं आए थे और हमें तो लगता है कि मोदी जी दिल्ली की गद्दी पर नहीं भी रहें, तब भी किसान आत्महत्या करते ही रहेंगे. मोदी जी के ट्रेलर और पिक्चर के बीच, गिनती में कम-बढ़ तो हो सकती है, पर किसान आत्महत्या करने से बाज आने वाले नहीं हैं. और कुछ ऐसा ही किस्सा बेरोजगार नौजवानों का भी है. नौजवान तब भी बेरोजगार थे, जब मोदी जी दिल्ली की गद्दी पर नहीं थे.
वर्ना मोदी जी कैसे हर साल दो करोड़ नौजवानों को रोजगार देने का वादा करते और उनके वादे पर नौजवान भर-भरकर कमल के निशान पर बटन दबा आते. हां! इतना जरूर है कि दो करोड़ नये रोजगार की तो भूल जाएं, मोदी जी ने ट्रेलर वाले दस साल में नौजवानों की बेरोजगारी कई गुना बढ़ाकर, चालीस साल की रिकार्ड ऊंचाई पर पहुंचा दी है. और यह तो सिर्फ ट्रेलर है. मोदी जी अगर असली पिक्चर दिखाने का मौका पा जाएंगे, पक्का है कि नौजवानों का हाल किसानों से बदतर कर के दिखाएंगे.
पर ये ट्रेलर भी और पिक्चर भी, मोदी जी से पहले से चले आते हैं. मोदी जी का ऑरीजिनल ट्रेलर तो कुछ और ही है. ऑरीजिनल ट्रेलर वह है, जिसमें मोदी जी डैमोक्रेसी को डैमोक्रेसी की मम्मी बनवाते देखे जा रहे हैं. डैमोक्रेसी की मम्मी जी का जलवा यह है कि पिछले कई साल से मोदी राज में भारत में धार्मिक स्वतंत्रताओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर चिंता जताने के बाद, ट्रेलर के आखिर में जर्मनी, अमरीका वगैरह से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ तक, भारत में चुनाव तक के स्वतंत्र व निष्पक्ष होने पर चिंता जता रहे हैं. और ऐसा न होने के इशारों की ओर ध्यान दिला रहे हैं. मोदी जी ने सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाला, तो उन्होंने ज्यादा शोर नहीं मचाया. पत्रकारों, लेखकों, कमेडियनों, प्रोफेसरों, छात्रों को जेल में डाला, तो भी उन्होंने बहुत शोर नहीं मचाया.
विरोधी पार्टियों के नेताओं को, मंत्रियों तक के खिलाफ जांचें करायीं, उन्हें जेलों में डाला, तब भी बाहर वालों ने बहुत शोर नहीं मचाया. पर जब से चुनाव से ऐन पहले डैमोक्रेसी की मम्मी जी ने दो-दो मुख्यमंत्रियों को जेल में पहुंचाया है और सबसे बड़ी विरोधी पार्टी के बैंक खातों पर जाम लगाया है, डैमोक्रेसी की विदेशी औलादों ने भी शोर मचाना शुरू कर दिया. और यह तो सिर्फ ट्रेलर है. असली पिक्चर लग गयी, तो फिर देखना कौन-कौन जेल जाता है और कौन बाहर रह जाता है!
और ट्रेलर में और भी बहुत से मसाले हैं. मॉब लिंचिंग. लव जेहाद. धर्मांतरण. मंदिर-कॉरीडोर वगैरह के उद्घाटन. नाम बदल. इतिहास बदल. दिन में दस-दस ड्रेस बदल. अरबपतियों-खरबपतियों की सेवा-टहल. और भी न जाने क्या-क्या? और ये तो ट्रेलर-ए-हिंदू राष्ट्र है! रोता है क्या, आगे-आगे देखिए असली पिक्चर में होता है क्या?
पिक्चर अभी बाकी है दोस्त !
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक 'लोकलहर' के संपादक हैं.)
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