(व्यंग्य: राजेंद्र शर्मा)
भई, अपने मोदी जी के साथ तो सरासर घटतोली हो गई और वह भी उनकी ही मंत्रिपरिषद के हाथों. कहने को कैबिनेट ने 22 जनवरी पर अलग से एक प्रस्ताव पास किया है. खुद अपनी बैठक से लेकर, उसके प्रस्ताव तक, सब को ऐतिहासिक करार दिया है. अपने ऐसे अभूतपूर्व समय में होने को, अपना परम सौभाग्य कहा है. रामलला की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा को संस्कृति प्रवाह, आध्यात्मिक आधार, आदि, आदि कहा है. पर मोदी जी को क्या मिला? खाली-पीली बधाई नुमा धन्यवाद, बस! इतने त्याग-तपस्या के बाद भी न अवतारी की पदवी, न दैवीय का सम्मान. और तो और, राजर्षि का आसन तक नहीं, जो अयोध्या में उन्हें बाकायदा मिल भी चुका था.
राजनाथ जी, आपसे ऐसी कृपणता की उम्मीद नहीं थी!
राम जी झूठ ना बुलाएं, हम यह कतई नहीं कह रहे हैं कि मोदी जी की शान में कोई गुस्ताखी हुई है. गुस्ताखी की छोड़िए, उनके लिए खोज-खोज के अच्छी-अच्छी बातें कही गयी हैं. उन पर विशेष ईश्वरीय कृपा होने का बाकायदा दावा भी किया गया है. कहा गया है कि उन्हें पांच सौ साल की प्रतीक्षा खत्म करने वाले मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के लिए नियति ने चुना था. अब नियति बेचारी तो उसी को चुनती है, जिसे चुनने को ईश्वर जी उससे कहते हैं.
ऊपर वाले के कारोबार में डैमोक्रेसी का ढकोसला थोड़े ही चलता है. पर चुने हुए हैं, सिर्फ इतना ही कहना काफी था क्या? इतना तो मोदी जी ने खुद अपने मुंह से ही कह दिया था. आखिर दरबारियों का भी कुछ धर्म, कुछ फर्ज बनता था? इससे कुछ तो आगे बढ़ना चाहिए था. अब उन्हें क्या उन्हीं की बात याद दिलानी पड़ेगी कि ऐसा मौका कई-कई जीवनों में एक बार आता है. मोदी जी को अवतार घोषित करने के लिए अब और किस चीज का इंतजार था? अब तो राम जी भी आ गए; अब भी नहीं, तो कब!
और ये जो 1947 में राष्ट्र के शरीर की आजादी और 22 जनवरी 2024 में आत्मा की आजादी का जुम्ला उछाला है, हमें तो उसके भी उल्टे पडऩे का डर है. दुष्ट जन अभी से बोलियां मार रहे हैं कि आत्मा गुलाम थी, तभी पब्लिक ने मोदी जी को दो-दो बार मौका दे दिया? अब तो आत्मा भी आजाद हो गयी, क्यों न इस बार किसी और को आजमाया जाए!
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक 'लोकलहर' के संपादक हैं.)
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