(व्यंग्य: राजेंद्र शर्मा)
हम तो इस्राइल के विरासती मामलों के मंत्री, अमीहाई इलियाहू जी की साफगोई के कायल हो गए. पट्ठे ने साफ-साफ कह दिया कि इस्राइल अब गजा पर एटमी बम भी चला सकता है. नहीं, नहीं मंत्री जी ने अब भी यह नहीं कहा कि इस्राइल एटम बम चलाने ही वाला है. इस्राइल के वफादार मंत्री ठहरे, ऐसा कैसे कह देते? ऐसा कहना तो राज उजागर करना हो जाता और वह भी वक्त से पहले. वैसे भी विरासती मामलों के मंत्री हैं. विरासत कैसी भी हो, कुछ नफासत तो बनती ही है. ऐसे कैसे मुंह खोलकर धड़ से कह देते कि अब हम एटम बम मारेंगे.
कहा भी तो ऐसे कि बाकी दुनिया को डर भी लगे कि एटम बम मार देंगे. और लोगों के मन में दुविधा भी बनी रहे कि क्या वाकई, एटम बम मार देंगे! एटम बम की धमकी, फिलिस्तीनियों पर शायद काम न करे, वो तो रोज-रोज के डराए जाने से, अब हरेक डर से ऊपर हो गए लगते हैं, पर बाकी दुनिया को कम-से-कम कुछ तो डराएगी ही. उन्हें भी, जिन्होंने इस्राइल को एटम बम मारने के काबिल बनाया है.
वैसे इलियाहू जी का यह बताना एकदम उपयुक्त है कि इस्राइल, अब एटम बम का इस्तेमाल कर सकता है. उसके सामने एक विकल्प एटम बम चलाने का भी है. आखिरकार, बंदा विरासत का मंत्री है. और इस्राइल की कुल जमा पचहत्तर साल की विरासत में फिलिस्तीनियों का खून बहाने के सिवा और है ही क्या? 1948 में खून बहाया. 1967 में खून बहाया. नयी सदी में लगातार, बार-बार खून बहाया. सोलह साल से गज़ा में लगातार खून बहा रहे हैं.
इस विरासत के लिए नया बचा भी क्या है, सिवा एटम बम चलाने के. इतना खून बहाया है, इतना खून बहाया है कि खून बहा-बहा के थक गए, पर फिलिस्तीनी खत्म नहीं हुए. तो फिर एटम बम भी सही. फुटकर में मार-मार के थक गए, इस बार थोक में मारने का जतन सही. वैसे थोक में तो एटम बम के बिना भी मार ही रहे हैं -- चार हफ्ते में करीब दस हजार. पर अबकी बार लाखों में बल्कि सब के सब, हीरोशिमा और नागासाकी की तरह. बड़े भाई अमरीका के ही नक्शे कदम पर तो चलेंगे. हो सकता है, इसी से बेचारों की जान की किट-किट खत्म हो जाए. न रहेेंगे फिलिस्तीनी और न रहेगी रंगभेदी निजाम की जरूरत. हो सकता है, बाद में सब नॉर्मल भी हो जाए, बड़े भाई अमरीका की तरह.
वैसे इस्राइल वालों की तरह, एक छोटे-मोटे एटम बम की जरूरत तो अपने भारत में भी है. सरकार के हाथ में नहीं, उसके हाथ में तो बहुत सारे बड़े-बड़े एटम बम हैं; एकाध छुटका बम तो सरकार चलाने वाली पार्टी के नेताओं के लिए भी होना चाहिए. जैसे राजस्थान के संदीप दायमा जी के पास. तिजारा में चुनाव सभा में उन्होंने अपना प्लान सुना दिया, तिजारा में सारे मस्जिद-गुरुद्वारे ध्वस्त. अपने इस प्लान पर स्टार प्रचारक आदित्यनाथ और उम्मीदवार बालकनाथ से तालियां भी बजवा लीं. पर छोटे-मोटे एटम बम के बिना, बेचारे के मन की हो, तो हो कैसे?
पर यहां तो एटम बम मिलना तो दूर, बेचारे को माफी और मांगनी पड़ गयी कि जुबान फिसल गयी और बाबरी मस्जिद की तरह ध्वंस होना था मस्जिदों-मदरसों का, पर गैंती गलती से गुरुद्वारे पर भी चल गयी. पट्ठे गुरुद्वारे वाले इस माफी को भी नहीं मान रहे हैं, कहते हैं कि आज मस्जिद-मदरसों का नंबर है, ऐसे तो कल हमारा भी नंबर आ जाएगा! अब तो बस एटम बम ही मन की कराएगा, वहां यहूदीवादियों की भी और यहां हिंदुत्ववादियों की भी.
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक 'लोकलहर' के संपादक हैं.)
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